Sunday, June 23, 2013


एक डाली बनकर उपजी
उस घर की मैं बिटिया थी,
माता-पिता की लाडली मैं
भाईयों की प्यारी बहना थी!!
एक डाली बनकर ------------बिटिया थी
       
माता पिता का प्यार मिला
       
भाईयों से इतना दुलार मिला,
       
छांव में उनके पली-बड़ी मैं
       
कांधो पर उनके चली मैं!!
दुःख न मेरे पास आया
सुख मैने इतना पाया,
हो अगर कभी उदास तो
माता-पिता ने समझाया!!
       
आज याद करके उनको
       
मेरा आंचल भर आया,
       
क्या गलती थी मेरी आखिर ?
       
क्यों ? मुझको तुमने ठुकराया!!
घर से बेघर करके मुझको
ससुराल को है भिजवाया,
दिल का तुकड ा दिल से अपने
बेघर क्यों करवाया ?
       
क्या गलती थी मेरी आखिर
       
क्यों मैंने ये वनवाश पाया ?
              
एक डाली बनकर -----------बिटिया थी!!
ना कोई दुलारता है,
ना कोई प्यार से पुकारता है,
अनजान सभी है मेरे लिये
न कोई अपना नजर आता है!!

               जब याद करती हॅू आपको तो,
             
मॉं का प्यार, बाबूजी का दुलार नजर आता है,
             
सोचकर आपकी तबियत की चिंता,
             
दिल मेरा छलनी हो जाता है!!
हाय रे मेरी किस्मत,
क्यों बेटी का मैंने तन पाया ?
छोड कर अपना पुराना घर
नया घर क्यो पाया ? क्यो पाया ?
एक डाली बनकर ..................बिटिया थी

 

No comments:

Post a Comment